सद्गुरु जिनका वास्तविक नाम जगदीश वासुदेव है जिन्हें जग्गी वासुदेव के नाम से भी जाना जाता है। इनका जन्म भारत के कर्नाटक राज्य के मैसूर में 3 सितंबर सन 1957 को हुआ था यह ईशा फाउंडेशन के संस्थापक हैं जो की कोयंबटूर में स्थित है यह उस फाउंडेशन के संस्थापक और मुख्य संचालक भी हैं ये फाउंडेशन योग तथा आध्यात्मिक संचालन का कार्य करती है। इनकी शादी सन 1984 में विजया कुमारी से हुई थी।
सद्गुरु का प्रारंभिक जीवन
सद्गुरु का जन्म एक यादव परिवार में हुआ था इनके पिताजी एक डॉक्टर थे बचपन में सद्गुरु को प्रकृति से बहुत ज्यादा लगाव था इसलिए वह बचपन में ही बहुत बार ऐसा होता था कि जंगलों में कुछ दिनों के लिए गायब हो जाते थे और जंगल में पेड़ों के ऊपर बैठकर ध्यान मुद्रा में चले जाते थे। जब जंगल से कुछ दिनों के बाद घर लौटते थे तब उनके थालिया में सांप भरे होते थे क्योंकि इनका बचपन से ही सांपों को पकड़ने में महारत हासिल थी।
बालक रूप में सद्गुरु के योग गुरु राघवेंद्र राव थे बालक सद्गुरु 11 वर्ष की अवस्था से योग तथा ज्ञान में बहुत ध्यान देते थे और वह ध्यान भी उसे समय से ही करने लगे थे। इन्होंने अपने स्नातक की उपाधि मैसूर विश्वविद्यालय से ली।
ईशा फाउंडेशन क्या है?
ईशा फाउंडेशन की स्थापना सद्गुरु ने बिना लाभ हानि के स्वार्थ के लोगों की भलाई के लिए किया था। यह संस्था लोगों के आध्यात्मिक शारीरिक तथा मानसिक और आंतरिक कुशलता के प्रति समर्पित है। यह संस्था 250000 से अधिक स्वयंसेवियों के द्वारा चलाया जाता है। इस फेडरेशन का मुख्यालय ईशा योग केंद्र कर्नाटक के कोयंबटूर में स्थित है।
ग्रीन हाथ परियोजना के अंतर्गत ईशा फाउंडेशन का लक्ष्य 16 करोड़ वृक्ष लगाने का है इन्होंने सन 2007 में 1 दिन में 8.5 लाख वृक्ष लगाकर गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज कराया था इन्हें उस साल इंदिरा गांधी पर्यावरण पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया इन्हें वर्ष 2017 में पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया गया यह इस समय नदियों के उद्धार के लिए काम कर रहे हैं तथा पृथ्वी की भूमि यानी की मिट्टी को बचाने के लिए भी मिशन चला रहे हैं।
ध्यान लिंग योग मंदिर
ध्यान लिंग योग मंदिर की स्थापना सद्गुरु ने सन 1999 में पूरा किया। योग विज्ञान का संपूर्ण शहर ध्यान लिंग ऊर्जा मंदिर में ऊर्जा का एक अनूठा प्रकार देखने को मिलता है। 13 फीट 9 इंच की लंबाई वाला यह ध्यान लिंक पर से निर्मित है।
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जो कि विश्व में सबसे बड़ा जीवित लिंग है। यह मंदिर किसी विशेष धर्म आदि के लोगों के लिए नहीं बनाया गया है और ना ही यहां पर किसी प्रकार की पूजा अर्चना की जाती है यहां पर लोग केवल कुछ मिनट में ही ज्ञान की गहरी अवस्था में चले जाते हैं इसी चीज का अनुभव करने के लिए यहां पर लोग आते हैं।
निष्कर्ष:
सतगुरु के जीवन से हमें सीख सकते हैं कि हम अपने जीवन में जो चाहे वह कर सकते हैं कैसे एक साधारण परिवार से आकर सद्गुरु आज पूरी दुनिया में एक अभिव्यक्ति के रूप में प्रसिद्ध हो गए हैं उनकी आलोचना भी बहुत जगह होती है किया अंधविश्वास को बढ़ावा देते हैं तथा विज्ञान को गलत तरीके से बताते हैं।
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परंतु यह अपना कार्य अपने तरीके से करते जाते हैं और वह आज एक बहुत बड़ी सेलिब्रिटी के रूप में भी जाने जाते हैं क्योंकि इन्हें दुनिया के हर एक बड़े विश्व मंच पर बुलाकर सम्मानित किया गया है और यह दुनिया के हर एक बड़े प्रशिक्षित संस्थानों में जाकर अपने विचारों को प्रस्तुत करते रहते हैं हम उनके जीवन से बहुत कुछ सीख सकते हैं।